Ad

सोयाबीन की खेती कैसे करें

सोयाबीन की खेती कैसे होती है

सोयाबीन की खेती कैसे होती है

सोयाबीन की खेती

सोयाबीन विश्व की प्रमुख तिलहनी फसल है। यह विश्व खाद्य तेल उत्पादन में करीब 30 फ़ीसदी का योगदान देती है। इसमें 20% तेल 40% प्रोटीन होता है। सोयाबीन का स्थान भारत की मुख्य फसलों में से एक है। 

विश्व में क्षेत्रफल एवं उत्पादन की दृष्टि से भारत उसमें प्रमुख स्थान रखता है।भारत में सोयाबीन की औसत उत्पादकता 11 से 12 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। भारत में सोयाबीन खरीफ में उगाई जाने वाली एक प्रमुख  फसल है। 

हमारे देश में सोयाबीन उत्पादन प्रमुख रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक में होती है। सोयाबीन के कुल क्षेत्र एवं उत्पादन में मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र का विशेष योगदान है। 

देश में सोयाबीन उत्पादन में प्रथम स्थान पर है। सोयाबीन से तेल प्राप्त होने के अलावा दूध दही पनीर आदि खाद्य पदार्थ भी तैयार किए जाते हैं।

मिट्टी

सोयाबीन की अच्छी पैदावार के लिए समतल एवं जल निकासी वाली दोमट भूमि अच्छी रहती है।इसकी खेती क्षारीय तथा अम्लीय भूमियां छोड़कर हर तरह की जमीन में की जा सकती है। 

काली मिट्टी में भी सोयाबीन की खेती अच्छी होती है। वैज्ञानिक भाषा में जिस मिट्टी का पीएच मान 6:30 से 7:30 के बीच हो वह इसकी खेती के लिए अच्छी होती है।

बीज

खरीफ में लगाई जानी फसल के लिए 70 से 75 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है जबकि ग्रीष्म एवं वसंत ऋतु के लिए 100 से 125  किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज चाहिए।

अच्छी पैदावार के लिए प्रमाणित या आधारित बीज लेना चाहिए और बुवाई से पूर्व थीरम या कार्जाबन्कडाजिम नामक दवा से ढाई ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करना चाहिए। 

इसके अलावा सोयाबीन में नाइट्रोजन स्थिरीकरण बाजार ग्रंथियों के शीघ्र विकास के लिए 20 को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए । 

पौधों के अच्छे विकास के लिए बीज को पीएसबी कल्चर से भी उपचारित करना चाहिए। इससे जमीन में मौजूद तत्वों को व्यक्ति दिया पौधे की जड़ों तक पहुंचाने में सुगमता लाता है। 

उक्त कल्चरों से बीज को उपचारित करने के लिए एक बर्तन में पानी लेकर 100 ग्राम गुड़ या शक्कर घोलकर उसमें इन कल्चर को मिलाया जाता है और उनका लेप बीज पर कर दिया जाता है।

बुवाई का समय

अच्छे उत्पादन के लिए बुवाई के समय का प्रमुख स्थान होता है। खरीफ सीजन में 25 जून से 15 जुलाई के मध्य का समय इसकी खेती के लिए उपयुक्त माना गया है। 

कम समय में पकने वाली किस्मों का चयन करें ताकि मौसमी दुष्प्रभाव से नुकसान को बचाया जा सके। मध्य भारत के कुछ क्षेत्रों व दक्षिण भारत में सोयाबीन बसंत यानी कि जायद ऋतु में बोई जाती है । 

उसकी बुबाई का उपयुक्त समय 15 फरवरी से 15 मार्च के बीच रहता है। इसकी बिजाई में पंक्ति से पंक्ति की दूरी  45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 3 से 5 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। इसके अलावा 20 30 से 4 सेंटीमीटर से ज्यादा गहरा नहीं डालना चाहिए।

उर्वरक प्रबंधन

अच्छे उत्पादन के लिए 10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर डालनी चाहिए।इसके अलावा नाइट्रोजन 25 किलोग्राम, फास्फोरस 80, किलोग्राम एवं पोटाश 50 किलोग्राम की दर से डालाना चाहिए। 

इसके अतिरिक्त 25 किलोग्राम सल्फर का प्रयोग करने से कई तरह की बीमारियां नहीं आती हैं। फास्फोरस की पूर्ति के लिए यदि डीएपी डाला जा रहा है तो सल्फर अलग से नहीं देनी चाहिए।

जल प्रबंधन

चुकी सोयाबीन की खेती बरसात के सीजन में की जाती है इसलिए पानी की ज्यादा जरूरत नहीं होती लेकिन यदि बरसात कम हो तो क्रांतिक अवस्थाओं, शाखाओं के विकास के समय फूल बनते समय एवं फलियां बनते समय और दाने के विकसित होते समय पानी लगाना चाहिए। वसंत ऋतु में 12 से 15 दिन के अंतराल पर 45 से चाहिए करनी होती हैं।

खरपतवार नियंत्रण

सोयाबीन की खरीफ ऋतु की फसल में खरपतवारओं का अधिक प्रयोग होता है जैसे उपज पर 40 से 50% तक नकारात्मक प्रभाव दिखता है। 

इसके नियंत्रण के लिए बुवाई के 20 से 25 दिन बाद हैंड हो द्वारा कतारों को मध्य में होगे खरपतवार को नष्ट कर देना चाहिए। 

इसके बाद 30 से 40 दिन बाद निराई गुड़ाई करके और है साथ में किया जाना चाहिए। रसायनिक नियंत्रण के लिए भी बाजार में कई तरह की दवाई मौजूद हैं।

बीमारी नियंत्रण, रोग

  1. भूरा धब्बा रोग फसल में फूल के समय पर आता है। इस रोग के धब्बे टेढ़े मेढ़े, लाल भूरे व किनारों से हल्के हरे होते हैं। अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां गिर जाती हैं। इससे बचाव के लिए स्वस्थ बीज का प्रयोग करें। मध्यम रोग प्रतिरोधी पालम सोया, हरित सोया, ली और ब्रैग जैसी किस्में लगाएं।
  2. बैक्टीरियल पश्चुयुल रोग के कारण पत्तियों के दोनों सदनों पर पीले उभरे हुए धब्बे प्रकट होते हैं जो बाद में लाल बुरे हो जाते हैं। छोटे-छोटे ऐसे ही धब्बे फलियों पर भी प्रकट होते हैं। इससे बचाव के लिए पंजाब नंबर 1 किस ना लगाएं रोग प्रतिरोधक किस्में ही लगाएं।
  3. पीला म्यूजिक विषाणु जनित रोग है। यह रोग सफेद मक्खी के माध्यम से फैलता है। इसके कारण पत्तों पर झुर्रियां पड़ जाती हैं और पत्ते और पौधे छोटे रह जाते हैं फलियां कम लगती हैं । मौसम में नमी अधिक होने पर तथा तापमान 22 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच होने पर रोग तेजी से फैलता है। बचाव के लिए विषाणु रहित बीज का प्रयोग करें और एक ही पौधे को तुरंत खेत से निकाल दें। गर्म क्षेत्र में ब्रैग किस्म न लगाएं। निचले क्षेत्रों में शिवालिक किस्म लगाने से बचें।

कीट नियंत्रण

  1. कूबड़ कीट की सुन्डियां पत्तों को क्षति पहुंचाती हैं। इससे पौधे की बढ़वार नहीं हो पाती है। बचाव के लिए फसल पर 50 मिलीलीटर मेलाथियान या 25 मिलीलीटर डाईक्लोरोवास 50 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। सुंडी को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए। यह दवाएं अगर प्रतिबंधित की गई हैं तो इनके विकल्प के रूप में जो दवाएं बाजार में मौजूद हैं वह डालें।
  2. बीन बाग कीट युवा और प्रौढ़ अवस्था में पत्तों का रस चूसते हैं। इससे पत्तों की ऊपर की सतह पर छोटे-छोटे सफेद या पीले धब्बे पड़ जाते हैं। बाद में यह पत्ते सूख कर गिर जाते हैं। बचाव के लिए 50 मिलीलीटर मोनोक्रोटोफॉस या 50 मिलीलीटर साइपरमैथरीन 50 लीटर पानी में घोलकर प्रति बीघा छिड़काव करना चाहिए।
  3. लपेटक बीटल भृंग फसल को शुरुआती दौर में 15 से 20 दिन तक तना, शाखा और पत्तियों को बहुत नुकसान पहुंचाता है। इसके बाद यह कीट तने में सुरंग बना देता है। इससे पौधे के ऊपर हिस्से मुरझा जाते हैं। बचाव के लिए फसल को खरपतवारओं से मुक्त रखें प्रकोप शुरू होने पर 50 मिलीलीटर मोनोक्रोटोफॉस 50 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

सोयाबीन में रासायनिक खरपतवार नियंत्रण

  1. घास समुदाय वाले खरपतवार के नियंत्रण के लिए पेंडीमिथालिन स्टांप की ढाई लीटर मात्रा डुबाई के दो दिन बाद पर्याप्त पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
  2. घास कुल वाले खरपतवार एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए फ्लूक्लोरालीन बाशालिन की 2 लीटर मात्रा बोने से पूर्व छिड़काव करें तथा अच्छी तरह से मिट्टी में मिला दें।
  3. केवल चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार ओं को मारने के लिए मेटसल्फ्यूरान 4 से 6 ग्राम प्रति हेक्टेयर मोबाइल के 20 से 25 दिन बाद छिड़काव करें।

Soyabean Tips: लेट मानसून में भी पैदा करना है बंपर सोयाबीन, तो करें मात्र ये काम

Soyabean Tips: लेट मानसून में भी पैदा करना है बंपर सोयाबीन, तो करें मात्र ये काम

देश में इस साल मानसून की असामान्य गतिविधि देखी जा रही है। कहीं पानी तो कहीं गर्मी सूखे के कारण, कृषक तय नहीं कर पा रहे हैं कि वो फसल कब और कौन सी बोएं। आम तौैर पर मानसून आधारित औसतन कम पानी की जरूरत वाली खरीफ की फसलों में शामिल, सोयाबीन की किस्मों पर किसान यकीन करते हैं।

असामान्य स्थिति

बारिश जनित असमान्य स्थितियों के कारण इस साल सोयाबीन खेती आधारित पैदावार क्षेत्रों में मानसूनी वर्षा के आगमन एवं फैलाव में स्थितियां पिछले सालों की तुलना में अलग हैं। कुछ जगहों के कृषक मित्र सोयाबीन की खेती शुरू कर चुके हैं, जबकि कुछ इलाकों के किसान सोयाबीन की बुआई के लिए अभी भी पर्याप्त वर्षा जल का इंतजार कर रहे हैं। मतलब इन इलाकों की सोयाबीन बुआई फिलहाल अभी रुकी हुई है।

ये भी पढ़ें: सोयाबीन, कपास, अरहर और मूंग की बुवाई में भारी गिरावट के आसार, प्रभावित होगा उत्पादन मानसून में हो रही देरी के कारण कृषि वैज्ञानिकों ने सोयाबीन के बीजों के चयन, उनको बोने एवं आवश्यक ध्यान रखने के बारे में कुछ सलाह जारी की हैं।

बुआई के लिए

मानसून की देरी से परेशान ऐसे किसान जिन्होंने अभी तक सोयाबीन की बुवाई नहीं की है, या फिर अभी 3 से 4 दिन पहले ही सोयाबीन बोया है तो उनके लिए यह सलाह काफी अहम है। आम तौर पर वैज्ञानिकों के अनुसार जुलाई महीने के पहले सप्ताह तक का समय सोयाबीन बोवनी के लिए उपयुक्त होता है। इसमें देरी होने पर कृषक ख्याल रखें कि बोवनी क्षेत्र में पर्याप्त वर्षा (100 मि.मी.) होने पर ही सोयाबीन कि बुवाई का वे जोखिम उठाएं।

ये भी पढ़ें: किसान भाई ध्यान दें, खरीफ की फसलों की बुवाई के लिए नई एडवाइजरी जारी

सोयाबीन की किस्म

इस बारे में कृषकों को सलाह दी गई है कि, वे एक ही किस्म की सोयाबीन बोवनी की बजाए खेत में विभिन्न समयावधि में पकने वाली किस्मों की बोवनी करें। इसमें 2 से 3 अनुशंसित किस्मों की सोयाबीन खेती को प्राथमिकता दी जा सकती है।

बीज दर का गणित

बीज ऐसा चुनें जिसकी गुणवत्ता न्यूनतम 70% अंकुरण की हो। इस आधार पर ही बोए जाने वाले बीज दर का भी प्रयोग करें। अंकुरण परीक्षण से सोयाबीन बोवनी हेतु उपलब्ध बीज का अंकुरण न्यूनतम 70 फीसदी सुनिश्चित करने से भी कृषक अपने बीज का परीक्षण कर सकते हैं।

ये भी पढ़ें: केन्द्र सरकार ने 14 फसलों की 17 किस्मों का समर्थन मूल्य बढ़ाया

पद्धति का चुनाव

सोयाबीन के लिए विपरीत माने जाने वाली सूखे कि स्थिति, अतिवृष्टि आदि से संभाव्य नुकसान कम करने सोयाबीन की बोवनी बी.बी.एफ. पद्धति या रिज एवं फरो विधि (Ridge and furrow) से करने की सलाह कृषि वैज्ञानिकों ने दी है।

सोयाबीन बीज उपचार

बोवनी के समय बीज को अनुशंसित तरीके से उपचारित कर थोड़ी देर छाया में सुखाएं | फिर इसके बाद अनुशंसित कीटनाशक से भी उपचारित करें | कृषक रासायनिक फफूंद नाशक के स्थान पर बीजों में जैविक फफूंद नाशक ट्रायकोडर्मा का भी उपयोग कर सकते है। इसे जैविक कल्चर के साथ मिलकर प्रयोग किया जा सकता है।

खाद का संतुलन

किसान सोयाबीन की फसल के लिए आवश्यक पोषक तत्वों नाईट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश व सल्फर की पूर्ति केवल बोवनी के वक्त करें।

बोवनी वक्त दूरी

सोयाबीन की बोनी के लिए 45 से.मी. कतारों की दूरी अनुपालन की अनुशंसा की जाती है। बीज को 2 से 3 से.मी. की गहराई पर बोते हुए पौधे से पौधे की दूरी 5 से 10 सेमी रखने की सलाह कृषि वैज्ञानिक देते हैं। कृषि वैज्ञानिकों की सलाह है कि, सोयाबीन बीज दर 65 से 70 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करने से बेहतर पैदावार होगी।